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मैंने भगवान श्रीराम को नहीं देखा, भगवान श्रीकृष्ण को नहीं देखा, महात्मा गांधी, पंडित नेहरु और इंदिरा गांधी को नहीं देखा। भगवान श्रीराम के रावण और श्रीकृष्ण के कंस से हुए युद्ध को सुना, महात्मा जी और नेहरु जी के अंग्रेजों के खिलाफ किए आंदोलन और संघर्ष को सुना और इंदिरा जी के पाकिस्तान से युद्ध को भी सुना, लेकिन पहली बार महसूस हो रहा है कि भगवान श्रीराम को रावण, भगवान श्रीकृष्ण को कंस, महात्मा जी और नेहरु जी को अंग्रजों के खिलाफ और इंदिरा जी को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध अथवा संघर्ष करने में किस कदर दिक्कतें आईं होंगी। हां स्वामी रामदेव के आंदोलन को बर्बाद करने के केंद्र सरकार और खासकर कांग्रेसी नेताओं के हथकंडे से ये महसूस पहली बार कर रहा हूं कि इन महापुरुषों को अपने संघर्ष में किस कदर साजिशों, षणयंत्रों और झूठ-फरेब का सामना करना पड़ा होगा। कह इसलिए रहा हूं कि काला धन आने से देश को फायदा होगा, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा तो देशवासियों को फायदा होगा और प्रभावी लोकपाल बनेगा तो जनता को बड़ी राहत मिलेगी। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल जो पीछे झूठ रहा है वो ये है कि आखिर वे कौन लोग हैं, जिन्हें कांग्रेस या कहें केंद्र सरकार बचाना चाहती है और अब इस हद तक आ गई कि जनता के बीच स्वामी रामदेव की साख तक को गिराने का स्वांग रच लिया गया? यह बड़ा सवाल है कि कांग्रेस के वे महासचिव चुप क्यों हैं, जो जनता का दर्द जानने के राजनीतिक विरोधियों सरकारों की छोटी सी भी हरकत पर हरकत कर बैठते हैं। सवाल ये है कि कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह के पीछे कौन लोग हैं और किनका पैसा विदेशी बैंकों में जमा हुआ है..? जिनके नाम बेनकाब होने पर सरकार और कांग्रेस की मुशि्कलें बढ़ जाएंगी..? आखिर किन लोगों के इशारे पर एक चिट्ठी के दम पर स्वामी रामदेव को ब्लैकमेल करने, उन्हें बदनाम करने और उनके आंदोलन को बेकार करने का प्रयास किया गया..? सवाल ये है कि स्वामी रामदेव के साथ बंद कमरे में चार घंटे तक क्या बात हुई और बाबा ने शनिवार को ही दिन में क्यों कहा कि उनके खिलाफ षणयंत्र रहे जा रहे हैं? साफ है उन्हें सरकार और कांग्रेस की ओर से खतरे का आभास पहले ही हो गया था, लेकिन ये साफ है कि बाबा की साख कमजोर नहीं पहले से ज्यादा मजबूत हुई है, क्योंकि उनकी लड़ाई निजी नहीं, जनता की है, देश की है, हमारी आने वाली पीढ़ियों की है….। कम से कम मै तो यही मानता हूं।
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