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गनीमत है अलगाववादियों ने सिर्फ कश्मीर के लाल चौक में ही तिरंगा फहराने पर आपत्ति की। अखंड भारत के उस भूभाग पर जिसे भारत सरकार अपना कहते नहीं थकती, लेकिन जब बात तिरंगा फहराने की आई तो भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर की सरकार का जैसा रुख सामने आया वह निश्चित ही स्तब्ध कर देने वाला है..। मैं हैरान इस बात पर हूं कि यदि केन्द्र और जम्मू-कश्मीर की सरकार ने अलगाववादियों के कालपनिक विरोध के भय से कश्मीर के लाल चौक में तिरंगा फरहाने पर रोक लगा दी, तो यही अलगाववादी यदि कल को यह कह दें कि उन्हें भारत की संसद पर तिरंगा मंजूर नहीं तो क्या सरकार संसद से भी तिरंगा उतार देगी..? संसद भी छोड़िए जनाब यदि कल को यही मुठ्ठी भर लोग देश के किसी अन्य हिस्से पर तिरंगा फहराने पर आपित्त कर दें तो क्या हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी..? और क्या तिरंगा फहराने पर रोक लगा देगी…? क्या यही मुठ्ठी भर अलगाववादी यदि कल को जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र घषित कर दे तो क्या जम्मू-कश्मीर अथवा केन्द्र सरकार उनकी घोषणा को मान लेगी..? क्या यह मुठ्ठी भर अलगाववादी कल को पाकिस्तान अथवा चीन में कश्मीर के विलय का दावा करें तो क्या जम्मू-कश्मीर या केन्द्र सरकार उनके दावे को मान लेगी..? कम से कम मैं तो नहीं चाहूंगा। बल्कि बतौर भारतीय नागरिक मैं और मेरे जैसे अरबों देशवासी कम से कम यही चाहेंगे कि जिस तर्ज पर स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने पंजाब के अलगाववादियों को जवाब दिया था उसी तर्ज पर केंद्र सरकार कश्मीर के भी उन अलगाववादियों को जवाब देने की ताकत दिखाए, जिन्होंने २६ जनवरी को कश्मीर के लाल चौक में तिरंगा फहराने का विरोध किया। मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि मात्र यह कहने भर से हमारी जिम्मेदारी खत्म नहीं होगी कि कश्मीर को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। ये नेताओं के वोट का मामला है। क्योंकि कश्मीर की समस्या का समाधान अब तक राजनीतिक तरीके से ही करने की कोशिश की गई, फिर चाहे उस समय कांग्रेस की सरकार हो या फिर एनडीए की। हम यह कह कर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते कि कश्मीर को राजनीतिक रंग देने की कोशिश हो रही है। मेरी पिछली पोस्ट “लाल चौक या दलाल चौक” पर कुछ मित्रों ने कहा कि कश्मीर अब अंतराष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है..। पर मैं कहना चाहूंगा कि कम से कम सन १९४७ से भारत की किसी भी सरकार ने यह नहीं माना कि कश्मीर का मुद्दा अंतराष्ट्रीय है.। हां पाकिस्तान और चीन जरुर कश्मीर को अंतराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं। साहब बात सिर्फ कश्मीर की नहीं है। यह अखंड भारत की कल्पना रखने वाले मेरे जैसे अरबों भारतीय की है और अगर हम अब भी चुप बैठे तो जवाब देने का मौका भी खो बैठेंगे। एक ओर भ्रष्टाचार का दीमक हमारे सिस्टम को खोखला कर रहा है और दूसरी ओर पूंजीपतियों का काला धन दूसरे देश के बैंकों में जमा हो रहा है। एेसे में यदि हमने कश्मीर के लाल चौक तिरंगा फहराने का भी हक खो दिया तो…. क्या होगा…? मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं जिन्होंने यह कहा कि सिर्फ राजनीतिक स्टंट है.. क्या उन्होंने कभी कश्मीर के मूल नागरिकों की कोई फिक्र की..? क्या वो ये जानते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु कश्मीर के मूल बाशिंदे थे। खैर मेरी बात तो चलती रहेगी…। पर आप बताइये कि क्या इन्हीं अलगाववादियों ने यदि कल को संसद पर फहराते तिरंगे पर आपत्ति की क्या सरकार का क्या रुख होगा….?
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