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रमेश चन्द्र त्रिपाठी…। इनके बारे मैं बहुत नहीं जानता। पर अपनी बात कहना चाहता हूं। मेरा जन्म अयोध्या में हुआ..। सन १९९२ को अच्छी तरह देखा और उससे पहले का भी बहुत कुछ याद है..। श्री राम जन्म भूमि मुकदमें को लम्बे अरसे से देखता आ रहा हूं.. और उससे जुड़े तमाम पक्षकारों के सम्पर्क में रहा हूं..। फैसला आने से पहले कुछ पोस्ट लिखी। गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट से पहले रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने न केवल रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका खारिज की, बल्कि उस पर जुर्माना भी लगा दिया..। लेकिन जब उन्हीं रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर…, जिसकी याचिका को ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट से खारिज किया गया था, उसी की याचिका पर उच्च न्यायालय के फैसले पर चंद दिनों के लिए ही सही पर रोक लग गई, यह खबर तमाम टीवी चैनलों में न केवल हेडलाइन बल्कि बहस का बड़ा विषय बनी..। बिना ये जाने कि रमेश चन्द्र त्रिपाठी है कौन..? और इसकी शखि्सयत क्या है ? एक निजी चैनल पर कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी, बीजेपी के रविशंकर प्रसाद, जफरयाब जिलानी और बाद में कांग्रेस की ओर से रशीद अलवी जुड़े। इस बहस में हैरानी की बात यह रही कि जब जफरयाब जिलानी और रविशंकर प्रसाद ने रमेश की याचिक पर सवाल उठाये और यह संशय जाहिर किया कि इसके पीछे कौन लोग है.? कुछ एेसे लोग है, जो नहीं चाहते फैसला आये या एेसे जो नहीं चाहते कि ये विवाद कभी खत्म हो…। तो अभिषेक मनु सिंघवी जी और राशिद साहब ने उनके संशय को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना और सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल तक बता दिया..। सबसे बड़ा ताज्जुब तो यह है कि उस कांग्रेस के नेता सुप्रीम कोर्ट की अवमनाना की बात कर रहे हैं, जिसके कार्यकाल में शाहबानो मामले में दिये गये कोर्ट के निर्णय को बदल दिया गया, जिसके कार्यकाल में एक प्रधानमंत्री के चुनाव पर दिये गये कोर्ट के निर्णय को बदल दिया गया, जिसके कार्यकाल में सीबीआई की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठता रहा…। खैर २४ सितम्बर एक इत्तफाक था। जिसका इंतजार अयोध्या मुकदमे के तमाम पक्षकार कर रहे थे। फिर चाहे वह बाबरी मस्िजद एेक्शन कमेटी हो, या फिर विहिप या फिर फैसले का इंतजार कर रहा कोई आम भारतीय। यह एेसा अनोखा संयोग था, जिस पर दोनों पक्ष बहुप्रतीक्षित फैसले का सर्वसम्मित से इंतजार कर थे, लेकिन अचानक रमेश चन्द्र त्रिपाठी जागे और उन्हें कामेनवेल्थ गेम, पंचायत चुनाव, नक्सली हिंसा और तमाम तरह की एेसी चिंता सताने लगी, जिन्हें देश लम्बे समय से देखता आ रहा है, पर हलकिसी का नहीं निकल सका और फैसला इन सबका नहीं बल्कि अयोध्या विवाद पर आने वाला था..। मैंने तीन-चार लोगों को एक पान की दुकान पर बात करते हुए सुना, जिसमें किसी एक ने अच्छी बात कही थी,जो आपको बता रहा हूं.., वह यह कि .. रमेश जी कमाल के हैं, जो लम्बे अरसे बाद नींद से जागे.. और सबसे बड़ी बात तो यह कि एेसे वक्त में जागे जब देश की एक अरब से ज्यादा आबादी उस फैसले को सुनने का इंतजार रही थी, जिसका इतंजार साठ साल से किया जा रहा है.., लेकिन वह सवाल अब भी अपनी जगह बना हुआ है कि जब रविशंकर प्रसाद और जफरयाब जिलानी जी दोनों ही रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर सवाल उठा रहे थे और यह संशय जाहिर कर रहे थे कि रमेश के पीछे कौन लोग हैं..? तो अभिषेक मनु जी और राशीद साहब ने वैसी प्रतिक्रिया क्यों दी..? सवाल तो मेरा भी है कि आखिर वे कौन लोग हैं.. जो इस फैसले को टालना चाहते हैं..? आखिर एेसा कौन है जो नहीं चाहता कि इस मुद्दे का समाधान कोर्ट से हो..? आखिर वे कौन लोग हैं.. जो अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति पर चलना चाहते हैं..? आखिर वे कौन लोग हैं, जो नहीं चाहते कि अयोध्या पर फैसला सुनने के लिए सभी पक्ष एकजुट हो..? ये तो हुई मेरी बात। पर आपका क्या चाहते हैं..?
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